फिर भी

A POEM by SWARUP KUMAR and RUPAM PATI

ये बारिश की बूंदें आज फिर तेरी याद दिला रही हैं
भूलना चाहता हूं तुम्हें फिर भी तेरे पास बुला रही है,
जनता हूँ कि अब तूम किसी और के साथ भींग रही हो
फिर भी मेरी वो छतरी तुम्हें याद तो आ ही रही होगी।

क्या तुम्हें याद है वो दिन जब साथ में भींगा करते थे
जमाने को भूल कर छोटी छोटी बातों पे लड़ा करते थे,
जनता हूँ कि अब तुम किसी और के साथ लड़ रही हो
फिर भी मेरी वो लड़ाई तुम्हें याद तो आ ही रही होगी।

इसी बारिश के मौसम में एक ही छतरी पे जाया करते थे
न तुम भींगा करती और न ही हम सूखा रहा करते थे,
जानता हूँ कि अब तुम किसी और के साथ चल रही हो
फिर भी मेरे साथ वो चलना तुम्हें याद तो आ ही रहा होगा।

वो तुम्हारे सर पे मेरा दोनों हाथ रख कर बारिश से बचाना,
और तुम्हारा यूँ नज़रों से नज़रें मिला कर नज़रें चुरा लेना,
अब आने वाली हर बारिशें तुम्हें यही याद दिलाया करेंगी।

   :- स्वरूपम
(Swarup kumar, Rupam pati)

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