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Showing posts from August, 2018

शुभ रात्रि

कोई इस रात को जाने को कह दो, मुझे बेइंतेहा नफ़रत से गुजरना है! शुभ रात्रि                                   - रूपम

तेरी यादों को ओढ़ कर

सो रहा था जब मैं तेरी यादों को ओढ़ कर , यादों ने जगा दिया तेरी पायलों की झंकार सुना कर… :- रूपम

मेरे इश्क़ का रंग

A Poem by Swarup Kumar and Rupam Pati शीर्षक:- मेरे इश्क़ का रंग मैं तुम्हारा था और तुम्हारा ही रह गया, इश्क़ के इस दरिये में बहता ही रह गया । सुबह से रात हुई, रात से सवेरा हो गया, तेरी याद आती रही और मैं जागता ही रह गया। जो दीदार न हुई तो चैन कैसे आएगा, थोड़ा सा मुस्कुरा दो वरना सुकून भी चल जाएगा । जब नाम तुम मेरा लेती हो चेहरा खिल सा जाता है, धड़कन तेज हो जाती है और साँसें थम सी जाती है। जब क़रीब से गुजरती हो न जाने क्या होने लगता है, नज़रें झुक सी जाती है और वक़्त रुक सा जाता है। तुम रातरानी जैसी महकती हो, मैं भँवरा जैसा तेरी ओर चला आता हूं धरती खींच लेती है जिस तरह बारिश की बूंदों को ठीक उसी तरह मैं तेरी ओर खींचा चला आता हूँ। छल छल करती नैना तेरी, मदिरा से भरी जाम से कम हैं क्या, तेरी नैनो का नशा चढ़ जाए जिसे, उसे किसी और नशे की जरूरत क्या। प्यार हो गया तुमसे, कह नहीं पाता हूँ तुम्हें डर रहता है हर घड़ी, खो ना दूँ तुम्हें प्रेम के इस नगर में कौन अपना कौन पराया, नगर के इस भीड़ में तुम्हें राम ही बना दे मेरा। तुम्हें मेरी मोहब्बत की खबर भी न हुई मेरे इश्

फिर भी

A POEM by SWARUP KUMAR and RUPAM PATI ये बारिश की बूंदें आज फिर तेरी याद दिला रही हैं भूलना चाहता हूं तुम्हें फिर भी तेरे पास बुला रही है, जनता हूँ कि अब तूम किसी और के साथ भींग रही हो फिर भी मेरी वो छतरी तुम्हें याद तो आ ही रही होगी। क्या तुम्हें याद है वो दिन जब साथ में भींगा करते थे जमाने को भूल कर छोटी छोटी बातों पे लड़ा करते थे, जनता हूँ कि अब तुम किसी और के साथ लड़ रही हो फिर भी मेरी वो लड़ाई तुम्हें याद तो आ ही रही होगी। इसी बारिश के मौसम में एक ही छतरी पे जाया करते थे न तुम भींगा करती और न ही हम सूखा रहा करते थे, जानता हूँ कि अब तुम किसी और के साथ चल रही हो फिर भी मेरे साथ वो चलना तुम्हें याद तो आ ही रहा होगा। वो तुम्हारे सर पे मेरा दोनों हाथ रख कर बारिश से बचाना, और तुम्हारा यूँ नज़रों से नज़रें मिला कर नज़रें चुरा लेना, अब आने वाली हर बारिशें तुम्हें यही याद दिलाया करेंगी।    :- स्वरूपम (Swarup kumar, Rupam pati)

छोटी सी कहानी

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पुरूष :- देखो जी, लगता है तुमने इस बार ठीक से गोबर नही लेपा… कल ही बारिश चालू हुई है और जमीन भीगने लगी… स्त्री :- ये सब छोड़ो, लो तुम भात खाओ और खेत जाओ… पुरूष :- (खाने के बाद) कौन सा वाला धोती पहन कर जाऊँ… कोई सा भी पहन लो (स्त्री जोर से आवाज़ दी), तुम आती क्यों नही (पुरुष प्यार से बुलाने लगा)…… स्त्री :- कोई भी पहन लो सब भीगे हुए हैं, पूरे घर में उमस है… पिछले पाँच दिनों से वर्षा हो रही है और तुम बोलते हो कि कल से…… . . फिर फिर सब खत्म.. दीवार कच्चा था… उन दोनों के ऊप्पर गिर पड़ा।

मैंने तुम्हें चाहा है…

A poem by Swarup kumar and Rupam pati मैंने देखा था तुम्हारे नयनों को, न पूरे होने वाले सपनो में, कह रही थी छोड़कर आओ, अपनो को मेरे उस सपने में। तुम न पूरी होने वाली ख्वाहिश हो फिर भी तेरा ही दीवाना हूँ, तुम जलती हुई लौ हो और उसमें जलने वाला मैं तेरा परवाना हूँ। मैंने तुम्हें चाहा है, सोचा है और अपनी इन कविताओं में पिरोया है…… काश होता तेरे अल्फाजों में, तेरे ग़ज़लों के किसी मझधार में तुम गाती मेरे नाम की गीत अपने पूरे दिनचर्या में, सुनाने ग़ज़ल तुम आती खुद को बचाते हुए जमाने से। कमाल की अपनी मोहब्बत होती इस नफरत की दुनिया मे, पर सपने ऐसे ही थोड़ी पूरे होते हैं सिर्फ आँखो के बन्द कर लेने से। मैंने तुम्हें चाहा है, सोचा है और अपनी इन कविताओं में पिरोया है…… :- स्वरूपम (Swarup kumar , Rupam pati)