A Poem by Swarup Kumar and Rupam Pati शीर्षक:- मेरे इश्क़ का रंग मैं तुम्हारा था और तुम्हारा ही रह गया, इश्क़ के इस दरिये में बहता ही रह गया । सुबह से रात हुई, रात से सवेरा हो गया, तेरी याद आती रही और मैं जागता ही रह गया। जो दीदार न हुई तो चैन कैसे आएगा, थोड़ा सा मुस्कुरा दो वरना सुकून भी चल जाएगा । जब नाम तुम मेरा लेती हो चेहरा खिल सा जाता है, धड़कन तेज हो जाती है और साँसें थम सी जाती है। जब क़रीब से गुजरती हो न जाने क्या होने लगता है, नज़रें झुक सी जाती है और वक़्त रुक सा जाता है। तुम रातरानी जैसी महकती हो, मैं भँवरा जैसा तेरी ओर चला आता हूं धरती खींच लेती है जिस तरह बारिश की बूंदों को ठीक उसी तरह मैं तेरी ओर खींचा चला आता हूँ। छल छल करती नैना तेरी, मदिरा से भरी जाम से कम हैं क्या, तेरी नैनो का नशा चढ़ जाए जिसे, उसे किसी और नशे की जरूरत क्या। प्यार हो गया तुमसे, कह नहीं पाता हूँ तुम्हें डर रहता है हर घड़ी, खो ना दूँ तुम्हें प्रेम के इस नगर में कौन अपना कौन पराया, नगर के इस भीड़ में तुम्हें राम ही बना दे मेरा। तुम्हें मेरी मोहब्बत की खबर भी न हुई मेरे इश्