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Showing posts from October, 2018

मैं आज भी ढूंढता हूँ

मैं आज भी तुम्हें इन यादों के सहारे ढूंढता रहता हूँ, और ढूंढते-ढूंढते मेरा मन मुझसे कहता है कि "मत ढूंढ उसे अब और, वो आजकल पराए मुल्क में रहती है…" बस इतना कहते कहते शांत हो जाता है फिर कुछ नही कहता… "कहने को कुछ ना होना भी दुखदायक ही है यादों के लिए…"

ये जालिम जमाना

इस स्‍थान में बेंत के हरे पेड़ के नीचे, मेरे साथ बैठना तुम… तुम आकाश के मार्ग में अड़े रुढ़िवादीयों के स्‍‍थूल उड़ते हुए आवाजों के आघात से खुद को बचाते हुए, मेरी ओर मुँह करके बैठे रहना… ये जालिम जमाना हमें कभी मिलने नही देगी…

प्रेम क्या है…

प्रेम क्या है…?? प्रेम न संज्ञा है और न सर्वनाम है प्रेम न कर्म है और न कारक है प्रेम न तत्सम है और न तद्भव है प्रेम न तो एकवचन है और न ही बहुवचन है "प्रेम केवल और केवल द्विवचन है…"

तुम सब्र कर

मैं भाग कर देखता हूँ, की मोहब्बत कब तक, रहती है बेगानी… तुम सब्र कर के देखो, की तुम्हारी वाली कब तक, रहती है दीवानी…                                           :- रूपम पति

दर्द दे

दर्द दे या चोट दे तेरा हर सितम है मंज़ूर, मगर ये देख कर भी अनदेखी कर देना है नामंज़ूर..                   :- रूपम