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Showing posts from 2019

बूत

बूत परस्त हूँ! अर्थात तुमसे पहले आया तुम्हें दिखे ना, तभी आंसू सुखाते आया खेल के मैदान में हैं विषैले कांटे मैं उन काँटों को उखाड़ते आया मैदान में पहुंचे थे कुछ उद्दंड लड़के ना माने तो कान के नीचे रखते आया काफिर को सच मे डर है पत्थरों का तभी तो तेरे गली में बचते बचाते आया कहते थे 370 हटाई तो आग लगा देंगे हटा दी, तो पत्थरबाज घर को दुबकते आया

नही सुनता

जाने से उसके घर में मिरा कोई वाक़िआत नही सुनता मैं इतना निठल्ला हूँ मेरे घर में भी कोई बात नही सुनता, उस रोज, वो शख़्स मुझे जिते'जी  कैसे मार गया था कहना तो चाहता हूँ मगर  कोई सच्ची वारदात नही सुनता!! गलती से भी कैसे चले गए आप उस मैदान में?? ज़नाब सब खेलते हैं वहां, कोई जज़्बात नही सुनता!! तुम कहाँ ये हिसाब किताब करने खत लिए बैठ गए?? छोड़ कर जाने के बाद कभी कोई सवालात नही सुनता.!!

यम राज

आ ! यम, बैठ मेरे पास बहुत बड़ा है मेरा ये कमरा तू भी महसूस कर, इस अकेलेपन को। बैठ गया ! तो बता कैसा है मेरे बारे में क्यों पूछ रहा मुझसे सिर्फ दर्द की कहानियां मिलेंगी। बैठा रह ! मैं चाय लाता हूँ डावेटिज तो नही है न तुम्हें? मैं उनकी यादों के मिठास से घुला करता हूँ। यार तुम ! सच में आये हो ! आने में इतनी देर कैसे लगा दी ? हाँ ट्रेफिक तो सच मे बढ़ ही गया है। मेरे मित्र ! ये दो बिस्किट कौन खायेगा ? ना…ही इन्हें वापस से डब्बे में नही रख सकता पॉकिट में भर ले.. पॉकिटमार कम हैं। कब से ? जब से डिजिटल हुए आजकल सीधे बैंक से धन गोल किया करते हैं अब तो चोर भी हाइ टेक हो गए हैं। चलो फिर! दोनों चलते हैं से क्या मतलब?? मैं नही जाने वाला, मैं यहाँ अकेला हूँ किसने कहा? संग मेरे अकेलापन भी रहता है। क्या कहा ! मैं झूट कह रहा, नही तो.. तुम्हारी इतनी साहस की मुझे झूठा कह रहे हो?? अब सच कोई सुनता कहाँ? नही बाबा ! तुम जाओ, और हाँ जाते जाते साथ अपने इन स्मृतियों को लेते जाना मैं नही चाहता कि मुझे डावेटिज हो.. अपना ख्याल रखना... यम! महीने में एक दो बार

मोहब्बत के दो अफ़साने

मोहब्बत के दो अफ़साने हो कर बेगाने मिलेंगे सड़कों पे नही तो हम,  तुम्हें मयख़ाने में मिलेंगे, गर तू निकाह कर ली  किसी अफसर के साथ तो सुनने मिरे आंखों में धूल जाने के बहाने मिलेंगे, तुम मिरे चेहरे के मुस्कान पे क्यों जाते हो जाना है तो दिल में जाओ, दर्द के तहख़ाने मिलेंगे, किमती वक़्त निकाल के आना मेरी डायरी देखने इसमें कहानियों में सिर्फ तुम्हारे दिखाए सपने मिलेंगे, देखो लौट के आने में तुम ज्यादा देर मत करना वरना हम भी किसी और के दीवाने मिलेंगे                                                 :- रूपम पति

बनारस कैफ़े

बनारस कैफ़े तन्मय कुंज द्वारा लिखित ये कहानी ज़रा पुरानी-सी है; उस वक़्त की जब बनारस और भी ज़्यादा कूल हुआ करता था, जब स्मार्टफ़ोन्स का भौकाल नहीं था, हवाओं में बकैती का कंसंट्रेशन बहुत ज़्यादा था, और जब कहानी लिखी नहीं, बकी जाती थी। अब आप कहेंगे- बनारस तो हमेशा से कूल था बे! इसकी कूलनेस में कोई कमी नहीं आई है। बकैती तुमनें छोड़ी होगी, हमनें नहीं। अब चुपचाप एक चौचक, चपशंड-सी स्टोरी सुनाओ नहीं तो बड़े प्रेम से कूटे जाओगे। अरे, आप तो गुस्सा हो गए। चलिए सुनाते हैं- तो कहानी 2006 की है। वो दोनों BHU के फ़ाइनल ईयर में थे। B.Tech ख़त्म होने में 2-3 महीने बचे थे। IIT-BHU में प्लेसमेंट वाले भनभना रहे थे। प्यार-व्यार जैसा कुछ था दोनों के बीच। दोनों फ़र्स्ट ईयर से ही हमेशा साथ दिखते थे। सुबह कॉलेज में, तो शाम में लंका, अस्सी, या बनारस की उन रैंडम-सी गलियों में। दोनों की एक बात फ़िक्स होती थी कि दिनभर चाहे कहीं भी हो, शाम हर रोज़ साथ बिताएँगे। ये फाइनल ईयर था बॉस। ज़िंदगी भर साथ रहने के वादे इसी ईयर में टूटते हैं ना। या तो उसके पापा नहीं मानेंगे या तुम्हारा प्लेसमेंट नहीं होगा। अब जो हो, लंका चलते

मेरी कुछ अनकही पंक्तियां

कुछ अनकही पंक्तियां ° वो आज जो हत्यारा बन बैठा है न, कल तक किसी के निगाहों से उसकी हत्या हुई थी… ° ° क़त्ल तो उनकी अदाएं करती हैं ये तलवारें तो मुफ़्त में बदनाम हो गए… वो ज़रा सी जो पलकें झुका के मुस्कुराई थीं हम तो उसी ज़गह पे अपने काम से तमाम हो गए… ° ° मुक़म्मल करने ही वाला था मैं वो नज़्म तभी तेरे ज़हन में इक बहम हुआ जन्म, आख़िर में तूने मुझे दे दिया था जो दर्द सो लिखने पड़े थे मुझे अपने सारे ज़ख्म ° ° आज उन्होंने शांज को सवेरा कह दिया मुझे काला और खुद को गोरा कह दिया, ध्यान से देखो मुझे, मैं तो मरा पड़ा हूँ लेकिन उन्होंने मुझे ही हत्यारा कह दिया। ° ° जेठ गया, लेकिन बालू पे घड़े की दाग आज भी है सुखी पड़ी कुएं पे रस्सी की वो दाग आज भी है जमाना कहता है, बीत चुका जमाना जुदाई को लेकिन तेरी मोहब्बत की, मेरे पीठ में दाग आज भी है… ° ° आईने में देखना,  चेहरे दिखाने से  बेहतर होता है फूलों का मुरझाना, तोड़े जाने से बेहतर होता है और कितने दिनों तक बेटियां डर के साये में जियें रेपिस्ट को जलाना, कैंडल जलाने से बेहतर होता है, ओ अच्छा! आप हमें उस रोज बर्बा

तुम शाम करो ना जिंदगी में

तुम शाम करो ना जिंदगी में मैं चला जा रहा हूँ उठ कर चौखट से रोक लो मुझे अपने मीठी बातों से, ना रुका तो मेरा हाथ थाम लेना अपने इन्ही कोमल - कोमल हाथों से… रख लो अपने सीने में सुन लूँगा तुम्हारी धड़कनों को सुनाऊँगा इन्ही से कोई कविता न जाऊँगा कभी दूर तुम्हारे सीने से… तुम शाम करो ना जिंदगी में नदिया के उसपार है मेरा गाँव कह दो, गर तुम साथ चलोगी तो पार करेंगे हम, नदीया नौका से॥ दूर जाने से नही मिलेगी मेरे मन को आनंद दूर जाने से नही मिलेगी कजरे की सुगंध, दूर होने से दोनों को ही नही आएगी निद्रा रोक लो मुझे, चाय पीने के बहाने से… न रुका तो जरा सा आवाज़ कर लेना अपने पायलों की झंकारे से… देखो तुम अंदर अकेली न जाओ अपने साथ मेरी आत्मा ले जाओ, मैं खुद को बड़े अच्छे से लूँगा संभाल यादों में बनी तुम्हारे चित्र के सहारे से… सघन मन में गहन वेदनाएं रह जाएंगी सघन वरण में गहन अश्रुएं रह जाएंगी ये और भी गहन होते चले जायेंगे मैं यथा बढ़ता जाऊंगा तुम्हारे द्वारे से… तुम शाम करो ना जिंदगी में गाँव का पथ ये लंबा बहुत है, ये स्वतः ही छोटा हो जाएगा मेरे संग, तुम्हारे उस ओर चल

तेरी यादें

मैंने अपने दर्द को एक डब्बे में बंद करके आगे बढ़ने की कौशिश की, लेकिन तेरी यादों ने चुपके से जा कर ढ़क्कन ही खोल दिया…                                 :-  रूपम पति  

ज़ुल्फ़

कोई उसे अपने जुल्फों को संभालने को कहो, बार बार चेहरे पे आ कर अटकती है… कोई उसे मेरे शरीर को संभालने को कहो, बार बार मयख़ाने पे आ कर अटकती है…                                       - रूपम पति