तुम शाम करो ना जिंदगी में

तुम शाम करो ना जिंदगी में

मैं चला जा रहा हूँ उठ कर चौखट से
रोक लो मुझे अपने मीठी बातों से,
ना रुका तो मेरा हाथ थाम लेना
अपने इन्ही कोमल - कोमल हाथों से…

रख लो अपने सीने में
सुन लूँगा तुम्हारी धड़कनों को
सुनाऊँगा इन्ही से कोई कविता
न जाऊँगा कभी दूर तुम्हारे सीने से…

तुम शाम करो ना जिंदगी में
नदिया के उसपार है मेरा गाँव
कह दो, गर तुम साथ चलोगी
तो पार करेंगे हम, नदीया नौका से॥

दूर जाने से नही मिलेगी मेरे मन को आनंद
दूर जाने से नही मिलेगी कजरे की सुगंध,
दूर होने से दोनों को ही नही आएगी निद्रा
रोक लो मुझे, चाय पीने के बहाने से…

न रुका तो
जरा सा आवाज़ कर लेना
अपने पायलों की झंकारे से…

देखो तुम अंदर अकेली न जाओ
अपने साथ मेरी आत्मा ले जाओ,
मैं खुद को बड़े अच्छे से लूँगा संभाल
यादों में बनी तुम्हारे चित्र के सहारे से…

सघन मन में गहन वेदनाएं रह जाएंगी
सघन वरण में गहन अश्रुएं रह जाएंगी
ये और भी गहन होते चले जायेंगे
मैं यथा बढ़ता जाऊंगा तुम्हारे द्वारे से…

तुम शाम करो ना जिंदगी में
गाँव का पथ ये लंबा बहुत है,
ये स्वतः ही छोटा हो जाएगा
मेरे संग, तुम्हारे उस ओर चलने से…

देखो घरों में चिरागें जलने लगीं हैं
घोंसलों में पंछीयां  जाने लगीं हैं,
मैं भी भारी मन किये जाने लगा हूँ
रोक लो मुझे, अपने प्रेमी संकेतों से…

न रुका तो
पुकार देना मेरा नाम
अपनी कोयल सी स्वर से…

जबकभी अकेली खड़े रहोगी चौखट पर
और आने लगे मंदहास मेरी हरकतों पर
तब करना, अच्छी अच्छी बातें खत
प्रेमालाप कर रही इन कबूतरों से…

आसमान में कबूतरें ले जा रहीं चिट्ठियां
लिखे हैं अपनी सुख-दुःख की कहानियां
मैं तो इस आसमान से भी परे उड़ चलूँगा
तुम्हारे क़मर में हाथ रख कर, संग उड़ने से…

तुम शाम करो ना जिंदगी में
देखो सूरज फिर मिलेंगे कहने लगा है
मैं भी, 'मिलते हैं' कहने लगा हूँ
रोक लो मुझे, अपने प्रेमालिंगन से…

तुम शाम करो ना जिंदगी में
तुम शाम करो ना जिंदगी में

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