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Showing posts from December, 2018

मैं लिखता क्या?

सब मिल ही जाता तो मैं लिखता क्या? जो तू मिल जाती तो ये बेवफाई मैं लिखता क्या? जो मुझे तेरी जरा सी मुस्कान मिल जाती तो मैं लिखता क्या? जो तुम्हारी नज़रें मुझसे मिल जाती तो मैं ये दर्द-ए-जुदाई लिखता क्या? मुझे मीठी वाणी मिल जाती तो मैं लिखता क्या? जो तू मुझे शर्माती हुई मिल जाती तो मैं ये रूसवाई लिखता क्या? जो तुम्हारा एक इशारा मिल जाता तो मैं लिखता क्या? अरे कम से कम, तुम्हारी नफ़रत ही मिल जाती तो मैं बेवजह की ये पंक्तियां, लिखता क्या?                                     :- रूपम पति

साक़ी ने पीला दिया

यूँ तो ना थी जन्म से मयख़ाने जाने की आदत किसी रोज मयख़ाने ने तन्हा देख कर बुला लिया, साक़ी से बात करवाने के बहाने हमें पीला दिया हमें उस दिन लगाव हो गया शराब से जिस दिन साक़ी ने अपने हाथों से पीला दिया…

भूलना भी एक

भूलना भी एक कला है जो हर किसीको नही आता, मैंने कई दफ़ा कोशिशें की लेकिन मुझे उनके अलावे और कुछ समझ मे नही आता…

उफ्फ रे मेघ

उफ्फ रे मेघ, तुम बहुत देर से आए हो… अब जाओ जा कर कालिदास का संदेश उनके प्रिया को दे आओ, और पुनरागमन के समय मुझे बिजली चमकने से चकाचौंध हुई नागरी स्त्रियों के नेत्रों की चंचल चितवनों का सुख जो तुमने लूटा है उसका वृत्तांत बतलाते जाना… और हाँ, ये तुम्हारे साथ चलने वाली ठंडी वायु जो सहसा सिहरन दे जाती है वो भी बताते जाने…

निश - रूपम

निश और कितना चाहूँ तुम्हे एक काम करो मेरी जान ले लो, रूपम मेरी जान ले कर मुझे अपनी जान मान लो… निश तर्षो गे तुम भी कभी प्यार के लिए आज जिसे तुम समझ नहीं पाए, रूपम गर कभी गलती से मुलाक़ात होती है मत कहना, की तुम मुझे समझ नहीं पाए… निश मोहबत तुम से की थी अब सिर्फ खुद से है, रूपम विश्वास तुमसे की थी अब सिर्फ खुद से है… निश जितनी मोहबत तुम से की अगर कान्हा से की होती तो वो भी हमारे दीवाने होते। रूपम और हम यूं ख़ाक में पलने वाले नही, आसमानों में उड़ने वाले परवाने होते…

चल देखता हूँ (व'सिष-रूपम)

रूपम चल देखता हूँ, किसका नशा जल्दी उतरता है…? ये शराब का या तेरी यादों का… व'सिष यादों का पैमाना हमेशा से भरा हुआ है ये ख़त्म होने की चीज़ नहीं । मैखाना दस बजे बंद हो जाएगी इसे रात भर खुली रहने की इजाज़त नहीं । रूपम ये सरकारें पीने नही देती हैं, और समाज प्यार करने नही देता…

शौक तो हमें

शौक तो हमें भी शराब की नही थी, मगर उनकी बेवफाई ने बेबस करा दिया.. ज़ाहिल नही हैं आप जो चंद रुपयों में बिकेंगे पढ़ लिख रहे कालिज में, अब दोनों लाइब्रेरी में मिलेंगे, जिस दिन तुमने देखी  लाइब्रेरी में भी बन्दूकें उस दिन भगवान के तख्त पे भी इंसान मिलेंगे, बच्चों के हाथ में  पब्जि जैसे और गेम आए तो तुम्हें ये खेल के मैदान भी सुनसान मिलेंगे, लोग केहते हैं, मेहनत करने वालों की हार नही होती! मेहनत करते रहो, वो नही तो उसके दोस्त मिलेंगे…