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हमारा धर्म

हमारे मंदिरों को पुनः प्राप्त करते हुए, हम हमारी परंपराओं को पुनः प्राप्त कर सकते हैं। हमारी परंपराओं को पुनः प्राप्त करते हुए, हम हमारी समुदायों को पुनः प्राप्त कर सकते हैं। हम हमारे समुदायों को पुनः प्राप्त करते हुए, हम हमारी भूमि पुनः प्राप्त करें। कहीं पढ़ा था

बिंदुवार

संपूर्ण सृष्टि अर्थात पृथ्वी पत्थर पेड़ पौधे खनिज संपदा जीव जंतु सब के सब सजीव है चाहे वह भूमि पर पड़ा वह पत्थर क्यों हो वह भी सजीव है। सब बढ़ते तथा घटते हैं और जो भी बढ़ता तथा घटता है वह नष्ट होता है किसी की आयु सीमा बहुत कम होती है तो किसी की बहुत अधिक होती है प्रत्येक को अपने द्वारा बिताया हुआ आयु सीमा बहुत दूसरे की तुलना में उत्तम लगती है। सर्प - मेढक ये एक प्रकार से देखें तो कीट पतंगों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहता है उनकी दृष्टि से देखा जाए तो वे अपना अपना निर्धारित आयु तय करते हैं। इसी प्रकार का पत्थर क्यों ना वह भी घटता या बढ़ता है, संभवत हम देख नहीं सकते हैं हो सकता है कि कई करोड़ों वर्ष में हमारे नाखून के जितनी चौड़ी कम हो। हमें इस बात का ज्ञान नहीं है कि पत्थर कितने समय के अंतराल में और कितनी मात्रा में कम होते हैं किंतु यह सत्य है , जैसे कि कोयला को ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है और था वह भी नष्ट हो जाते हैं अर्थात कुछ वस्तुएं अपनी आकार से बड़ी होती हुई नष्ट होती है तो कुछ अपनी आकार से छोटी होते हुए नष्ट होती हैं। जो अपने आकार से बड़े वही सजीव हो ऐसा कहना अथवा सोचन