Posts

Showing posts from September, 2018

जाने दे उसे

Image
जाने दे उसे नजरो से दूर जाएगा भी तो कितना जाएगा गर है तेरा दिल बेकसूर तो लौट कर वो जरूर आएगा..                                                  - रूपम

न जाने क्या क्या कर दिया था।

Image
उस हसीना के हुस्न ने मेरे अन्तरंग को अनाथ कर दिया था, कलकल करती मन की पीड़ा को और कड़ा कर दिया था..                            - रूपम पति

आपकी प्यारी बातों

तवायफदारों ने छेड़ी थी हुस्न को, और आपकी प्यारी बातों ने मुझको..

यार मेघ

यार बादल(मेघ) तुम भी ना यार...!! जब भी उत्‍सव मनाने की अभ्‍यासी बगुलियाँ आकाश में पंक्तियाँ बाँध-बाँधकर नयनों को सुभग लगनेवाले तुम्‍हारे समीप पहुँचतीं हैं तब तुम धीरे हो जाते हो, कैसे?? वायु को समय बता कर रखते हो क्या, की "जब सूरज ढलने का समय हो तब तुम धीरे-धीरे बहना" हाँ यार उन बगुलों आकाश में पंक्तियाँ बाँध-बाँधकर उड़ना हम सबों को अच्छा लगता है.. 😍😍

वायु मेघ को चलाती है।

अनुकूल वायु मेघ को धीमे-धीमे चलाती रहती हैं, हाँ जब मन करता है जोर से चला लेती हैं.. क्या मेघ का वायु पर कोई जोर चला है ?? नही कभी भी नही.. ठीक उसी प्रकार लड़कियाँ लड़कों को चलाती हैं, कभी धीरे तो कभी जोर स्त्रियां पुरुषों को चलतीं हैं, कभी धीरे तो कभी जोर.. यही प्रकृति का नियम है स्वीकार करो.. 🙄🙄

काम के सताए

जो काम के सताए हुए होते हैं, वे जैसे चेतन के समीप ठीक वैसे ही अचेतन के समीप भी, स्‍वभाव से दीन हो जाते हैं। मुझे देखो.. न काम न काज दिन भर पड़ा रहता हूँ, "आलस्य ने मुझे निगल लिया है" ये कहना अनुपयुक्त होगा, "मैं आलस्य को निगल गया हूँ" ये कहना उपयुक्त होगा.. क्योंकि अजगर कभी किसी जानवर को निगलने के बाद ज्यादा दूर नही जाता आस पास ही कोई पेड़ ढूंढता है..

बेदर्द ये जमाना

बेदर्द ये जमाना सबकुछ राख कर देगा एक दिन, लेकिन तेरी यादें मेरे सीने में आतीं रहेंगीं हर दिन...                          :- रूपम

यादें

मुँह मोडू तो मुझे मना कर आगोश में ले लेती है, तेरी यादें कम्बख्त मुझसे इश्क बहुत करती है...

पहली मुलाकात

एक नशा सा लगा चढ़ने हवाएं भी लगी थी महकने, था देखा जब पहली बार तुम्हें मैं भी लगा था बेहकने... माहौल हो रहा था खामोश सुनाई देने लगी थी मेरी ही धड़कने, और मैं होने लगा था मदहोश जब तुम मेरे पास से लगी थी गुजरने... होने ही वाली थी बरसात आसमाँ में लगे थे बादल छाने, देख मुस्कान बादलों ने लिया रुख मोड़ फिर से लगा था आसमाँ में सूरज चमकने... प्रेमी तेरा उस क्षण बन गया लगा देखने दिवास्वप्नए, तुम रहो मेरे ही संग और दोनों एकदूजे के रंग में लगे रंगने... मेरे हालात बदल गए, मैं हर वक़्त खुशनुमा रहने लगा, कैसा ये हादसा हुआ कि मुझे बेशुमार इश्क़ होने लगा ।                                 : - स्वरूपम                    (SWARUP KUMAR & RUPAM PATI)

मुझे खर कह दिया

मैंने कौतहूल बस इस डगर में आपका साथ मांगा था, आपने बड़े सलीखे से मेरे इस तप को तोड़ दिया था। अब मैं विरह का ये वृत्तान्त किससे कहता फिरूँ, आपने अपने दर्प में मेरे मुख पे मुझे खर कह दिया था।                                                              :- रूपम (दर्प - घमंड; खर - तीक्ष्ण)

ये जो आँखें

ये जो तुम्हारी आँखों, बातें किया करतीं हैं, मुझे मेरी ही बातों को भुला दिया करतीं हैं।                                              :- रूपम