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Showing posts from 2018

मैं लिखता क्या?

सब मिल ही जाता तो मैं लिखता क्या? जो तू मिल जाती तो ये बेवफाई मैं लिखता क्या? जो मुझे तेरी जरा सी मुस्कान मिल जाती तो मैं लिखता क्या? जो तुम्हारी नज़रें मुझसे मिल जाती तो मैं ये दर्द-ए-जुदाई लिखता क्या? मुझे मीठी वाणी मिल जाती तो मैं लिखता क्या? जो तू मुझे शर्माती हुई मिल जाती तो मैं ये रूसवाई लिखता क्या? जो तुम्हारा एक इशारा मिल जाता तो मैं लिखता क्या? अरे कम से कम, तुम्हारी नफ़रत ही मिल जाती तो मैं बेवजह की ये पंक्तियां, लिखता क्या?                                     :- रूपम पति

साक़ी ने पीला दिया

यूँ तो ना थी जन्म से मयख़ाने जाने की आदत किसी रोज मयख़ाने ने तन्हा देख कर बुला लिया, साक़ी से बात करवाने के बहाने हमें पीला दिया हमें उस दिन लगाव हो गया शराब से जिस दिन साक़ी ने अपने हाथों से पीला दिया…

भूलना भी एक

भूलना भी एक कला है जो हर किसीको नही आता, मैंने कई दफ़ा कोशिशें की लेकिन मुझे उनके अलावे और कुछ समझ मे नही आता…

उफ्फ रे मेघ

उफ्फ रे मेघ, तुम बहुत देर से आए हो… अब जाओ जा कर कालिदास का संदेश उनके प्रिया को दे आओ, और पुनरागमन के समय मुझे बिजली चमकने से चकाचौंध हुई नागरी स्त्रियों के नेत्रों की चंचल चितवनों का सुख जो तुमने लूटा है उसका वृत्तांत बतलाते जाना… और हाँ, ये तुम्हारे साथ चलने वाली ठंडी वायु जो सहसा सिहरन दे जाती है वो भी बताते जाने…

निश - रूपम

निश और कितना चाहूँ तुम्हे एक काम करो मेरी जान ले लो, रूपम मेरी जान ले कर मुझे अपनी जान मान लो… निश तर्षो गे तुम भी कभी प्यार के लिए आज जिसे तुम समझ नहीं पाए, रूपम गर कभी गलती से मुलाक़ात होती है मत कहना, की तुम मुझे समझ नहीं पाए… निश मोहबत तुम से की थी अब सिर्फ खुद से है, रूपम विश्वास तुमसे की थी अब सिर्फ खुद से है… निश जितनी मोहबत तुम से की अगर कान्हा से की होती तो वो भी हमारे दीवाने होते। रूपम और हम यूं ख़ाक में पलने वाले नही, आसमानों में उड़ने वाले परवाने होते…

चल देखता हूँ (व'सिष-रूपम)

रूपम चल देखता हूँ, किसका नशा जल्दी उतरता है…? ये शराब का या तेरी यादों का… व'सिष यादों का पैमाना हमेशा से भरा हुआ है ये ख़त्म होने की चीज़ नहीं । मैखाना दस बजे बंद हो जाएगी इसे रात भर खुली रहने की इजाज़त नहीं । रूपम ये सरकारें पीने नही देती हैं, और समाज प्यार करने नही देता…

शौक तो हमें

शौक तो हमें भी शराब की नही थी, मगर उनकी बेवफाई ने बेबस करा दिया.. ज़ाहिल नही हैं आप जो चंद रुपयों में बिकेंगे पढ़ लिख रहे कालिज में, अब दोनों लाइब्रेरी में मिलेंगे, जिस दिन तुमने देखी  लाइब्रेरी में भी बन्दूकें उस दिन भगवान के तख्त पे भी इंसान मिलेंगे, बच्चों के हाथ में  पब्जि जैसे और गेम आए तो तुम्हें ये खेल के मैदान भी सुनसान मिलेंगे, लोग केहते हैं, मेहनत करने वालों की हार नही होती! मेहनत करते रहो, वो नही तो उसके दोस्त मिलेंगे…

प्रेम तो होने दो

मैं खुद को सम्भाल लूंगा पहले तुम होश में तो आओ, मैं होश में आ जाऊँगा पहले तुम उनकी नजरें मुझपर से हटाओ, मैं नज़रे भी हटा लूंगा पहले ये फरेब का श्रृंगार तो उतारो, मैं फ़रेब का नक़ाब उतार लूँगा पहले आप मेरा असली चेहरा तो ले के आओ, आपका असली चेहरा भी दिख जाएगा पहले आपको किसी से प्रेम तो होने दो॥

आज वो पहले जैसे बातें नही होती…

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A Poem by Swarup Kumar and Rupam Pati शीर्षक:- आज वो पहले जैसे बातें नही होती कभी किया करते थे जिनसे दिल की हज़ारों बातें आज वो सिर्फ बन कर रह गयी हैं पुरानी यादें, अब वो यादें मुझे हर रात सोने नही देती चेहरा सामने आता है और नींद दूर चली जाती। अब तो वो हमे बनावटी हंसी पेश करती है भरी महफ़िल में वो हमें पराया महसूस करती हैं, रंगीन जिसने हमारी दुनिया की थी वो ही आज इसे बेरंग महसूस कराती हैं। क्यों किया करती हो ऐसी हरकतें मुझसे अब और ये देखा नही जाता, सच तो तुम कहती नही और तुमसे तो झूठ भी बोला नही जाता। चलो माना तुम्हारे नज़रों में मेरी कुछ गलतियां रही होंगी अगर वो मेरी ही गलतियां थी तो कम से कम मुझे ही तो बता देती, ये सच है कि कुछ गुनाहों की नही मिलती है माफी पर यूँ नज़रंदाज़ करना भी तो हमे हिदायत नही देती। लाख कोशिशों के बाद भी आज वो पहले जैसे बातें नही होती कहना तो बहुत कुछ चाहता हूं पर तुम सुनना ही नही चाहती, आज मेरे हिस्से में यूँ खुशियां बिखर नही जाती काश उस दिन आप हमें दिखाई ही नही देती…                                                - स्वरूपम

मैं आज भी ढूंढता हूँ

मैं आज भी तुम्हें इन यादों के सहारे ढूंढता रहता हूँ, और ढूंढते-ढूंढते मेरा मन मुझसे कहता है कि "मत ढूंढ उसे अब और, वो आजकल पराए मुल्क में रहती है…" बस इतना कहते कहते शांत हो जाता है फिर कुछ नही कहता… "कहने को कुछ ना होना भी दुखदायक ही है यादों के लिए…"

ये जालिम जमाना

इस स्‍थान में बेंत के हरे पेड़ के नीचे, मेरे साथ बैठना तुम… तुम आकाश के मार्ग में अड़े रुढ़िवादीयों के स्‍‍थूल उड़ते हुए आवाजों के आघात से खुद को बचाते हुए, मेरी ओर मुँह करके बैठे रहना… ये जालिम जमाना हमें कभी मिलने नही देगी…

प्रेम क्या है…

प्रेम क्या है…?? प्रेम न संज्ञा है और न सर्वनाम है प्रेम न कर्म है और न कारक है प्रेम न तत्सम है और न तद्भव है प्रेम न तो एकवचन है और न ही बहुवचन है "प्रेम केवल और केवल द्विवचन है…"

तुम सब्र कर

मैं भाग कर देखता हूँ, की मोहब्बत कब तक, रहती है बेगानी… तुम सब्र कर के देखो, की तुम्हारी वाली कब तक, रहती है दीवानी…                                           :- रूपम पति

दर्द दे

दर्द दे या चोट दे तेरा हर सितम है मंज़ूर, मगर ये देख कर भी अनदेखी कर देना है नामंज़ूर..                   :- रूपम

जाने दे उसे

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जाने दे उसे नजरो से दूर जाएगा भी तो कितना जाएगा गर है तेरा दिल बेकसूर तो लौट कर वो जरूर आएगा..                                                  - रूपम

न जाने क्या क्या कर दिया था।

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उस हसीना के हुस्न ने मेरे अन्तरंग को अनाथ कर दिया था, कलकल करती मन की पीड़ा को और कड़ा कर दिया था..                            - रूपम पति

आपकी प्यारी बातों

तवायफदारों ने छेड़ी थी हुस्न को, और आपकी प्यारी बातों ने मुझको..

यार मेघ

यार बादल(मेघ) तुम भी ना यार...!! जब भी उत्‍सव मनाने की अभ्‍यासी बगुलियाँ आकाश में पंक्तियाँ बाँध-बाँधकर नयनों को सुभग लगनेवाले तुम्‍हारे समीप पहुँचतीं हैं तब तुम धीरे हो जाते हो, कैसे?? वायु को समय बता कर रखते हो क्या, की "जब सूरज ढलने का समय हो तब तुम धीरे-धीरे बहना" हाँ यार उन बगुलों आकाश में पंक्तियाँ बाँध-बाँधकर उड़ना हम सबों को अच्छा लगता है.. 😍😍

वायु मेघ को चलाती है।

अनुकूल वायु मेघ को धीमे-धीमे चलाती रहती हैं, हाँ जब मन करता है जोर से चला लेती हैं.. क्या मेघ का वायु पर कोई जोर चला है ?? नही कभी भी नही.. ठीक उसी प्रकार लड़कियाँ लड़कों को चलाती हैं, कभी धीरे तो कभी जोर स्त्रियां पुरुषों को चलतीं हैं, कभी धीरे तो कभी जोर.. यही प्रकृति का नियम है स्वीकार करो.. 🙄🙄

काम के सताए

जो काम के सताए हुए होते हैं, वे जैसे चेतन के समीप ठीक वैसे ही अचेतन के समीप भी, स्‍वभाव से दीन हो जाते हैं। मुझे देखो.. न काम न काज दिन भर पड़ा रहता हूँ, "आलस्य ने मुझे निगल लिया है" ये कहना अनुपयुक्त होगा, "मैं आलस्य को निगल गया हूँ" ये कहना उपयुक्त होगा.. क्योंकि अजगर कभी किसी जानवर को निगलने के बाद ज्यादा दूर नही जाता आस पास ही कोई पेड़ ढूंढता है..

बेदर्द ये जमाना

बेदर्द ये जमाना सबकुछ राख कर देगा एक दिन, लेकिन तेरी यादें मेरे सीने में आतीं रहेंगीं हर दिन...                          :- रूपम

यादें

मुँह मोडू तो मुझे मना कर आगोश में ले लेती है, तेरी यादें कम्बख्त मुझसे इश्क बहुत करती है...

पहली मुलाकात

एक नशा सा लगा चढ़ने हवाएं भी लगी थी महकने, था देखा जब पहली बार तुम्हें मैं भी लगा था बेहकने... माहौल हो रहा था खामोश सुनाई देने लगी थी मेरी ही धड़कने, और मैं होने लगा था मदहोश जब तुम मेरे पास से लगी थी गुजरने... होने ही वाली थी बरसात आसमाँ में लगे थे बादल छाने, देख मुस्कान बादलों ने लिया रुख मोड़ फिर से लगा था आसमाँ में सूरज चमकने... प्रेमी तेरा उस क्षण बन गया लगा देखने दिवास्वप्नए, तुम रहो मेरे ही संग और दोनों एकदूजे के रंग में लगे रंगने... मेरे हालात बदल गए, मैं हर वक़्त खुशनुमा रहने लगा, कैसा ये हादसा हुआ कि मुझे बेशुमार इश्क़ होने लगा ।                                 : - स्वरूपम                    (SWARUP KUMAR & RUPAM PATI)

मुझे खर कह दिया

मैंने कौतहूल बस इस डगर में आपका साथ मांगा था, आपने बड़े सलीखे से मेरे इस तप को तोड़ दिया था। अब मैं विरह का ये वृत्तान्त किससे कहता फिरूँ, आपने अपने दर्प में मेरे मुख पे मुझे खर कह दिया था।                                                              :- रूपम (दर्प - घमंड; खर - तीक्ष्ण)

ये जो आँखें

ये जो तुम्हारी आँखों, बातें किया करतीं हैं, मुझे मेरी ही बातों को भुला दिया करतीं हैं।                                              :- रूपम

शुभ रात्रि

कोई इस रात को जाने को कह दो, मुझे बेइंतेहा नफ़रत से गुजरना है! शुभ रात्रि                                   - रूपम

तेरी यादों को ओढ़ कर

सो रहा था जब मैं तेरी यादों को ओढ़ कर , यादों ने जगा दिया तेरी पायलों की झंकार सुना कर… :- रूपम

मेरे इश्क़ का रंग

A Poem by Swarup Kumar and Rupam Pati शीर्षक:- मेरे इश्क़ का रंग मैं तुम्हारा था और तुम्हारा ही रह गया, इश्क़ के इस दरिये में बहता ही रह गया । सुबह से रात हुई, रात से सवेरा हो गया, तेरी याद आती रही और मैं जागता ही रह गया। जो दीदार न हुई तो चैन कैसे आएगा, थोड़ा सा मुस्कुरा दो वरना सुकून भी चल जाएगा । जब नाम तुम मेरा लेती हो चेहरा खिल सा जाता है, धड़कन तेज हो जाती है और साँसें थम सी जाती है। जब क़रीब से गुजरती हो न जाने क्या होने लगता है, नज़रें झुक सी जाती है और वक़्त रुक सा जाता है। तुम रातरानी जैसी महकती हो, मैं भँवरा जैसा तेरी ओर चला आता हूं धरती खींच लेती है जिस तरह बारिश की बूंदों को ठीक उसी तरह मैं तेरी ओर खींचा चला आता हूँ। छल छल करती नैना तेरी, मदिरा से भरी जाम से कम हैं क्या, तेरी नैनो का नशा चढ़ जाए जिसे, उसे किसी और नशे की जरूरत क्या। प्यार हो गया तुमसे, कह नहीं पाता हूँ तुम्हें डर रहता है हर घड़ी, खो ना दूँ तुम्हें प्रेम के इस नगर में कौन अपना कौन पराया, नगर के इस भीड़ में तुम्हें राम ही बना दे मेरा। तुम्हें मेरी मोहब्बत की खबर भी न हुई मेरे इश्

फिर भी

A POEM by SWARUP KUMAR and RUPAM PATI ये बारिश की बूंदें आज फिर तेरी याद दिला रही हैं भूलना चाहता हूं तुम्हें फिर भी तेरे पास बुला रही है, जनता हूँ कि अब तूम किसी और के साथ भींग रही हो फिर भी मेरी वो छतरी तुम्हें याद तो आ ही रही होगी। क्या तुम्हें याद है वो दिन जब साथ में भींगा करते थे जमाने को भूल कर छोटी छोटी बातों पे लड़ा करते थे, जनता हूँ कि अब तुम किसी और के साथ लड़ रही हो फिर भी मेरी वो लड़ाई तुम्हें याद तो आ ही रही होगी। इसी बारिश के मौसम में एक ही छतरी पे जाया करते थे न तुम भींगा करती और न ही हम सूखा रहा करते थे, जानता हूँ कि अब तुम किसी और के साथ चल रही हो फिर भी मेरे साथ वो चलना तुम्हें याद तो आ ही रहा होगा। वो तुम्हारे सर पे मेरा दोनों हाथ रख कर बारिश से बचाना, और तुम्हारा यूँ नज़रों से नज़रें मिला कर नज़रें चुरा लेना, अब आने वाली हर बारिशें तुम्हें यही याद दिलाया करेंगी।    :- स्वरूपम (Swarup kumar, Rupam pati)

छोटी सी कहानी

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पुरूष :- देखो जी, लगता है तुमने इस बार ठीक से गोबर नही लेपा… कल ही बारिश चालू हुई है और जमीन भीगने लगी… स्त्री :- ये सब छोड़ो, लो तुम भात खाओ और खेत जाओ… पुरूष :- (खाने के बाद) कौन सा वाला धोती पहन कर जाऊँ… कोई सा भी पहन लो (स्त्री जोर से आवाज़ दी), तुम आती क्यों नही (पुरुष प्यार से बुलाने लगा)…… स्त्री :- कोई भी पहन लो सब भीगे हुए हैं, पूरे घर में उमस है… पिछले पाँच दिनों से वर्षा हो रही है और तुम बोलते हो कि कल से…… . . फिर फिर सब खत्म.. दीवार कच्चा था… उन दोनों के ऊप्पर गिर पड़ा।

मैंने तुम्हें चाहा है…

A poem by Swarup kumar and Rupam pati मैंने देखा था तुम्हारे नयनों को, न पूरे होने वाले सपनो में, कह रही थी छोड़कर आओ, अपनो को मेरे उस सपने में। तुम न पूरी होने वाली ख्वाहिश हो फिर भी तेरा ही दीवाना हूँ, तुम जलती हुई लौ हो और उसमें जलने वाला मैं तेरा परवाना हूँ। मैंने तुम्हें चाहा है, सोचा है और अपनी इन कविताओं में पिरोया है…… काश होता तेरे अल्फाजों में, तेरे ग़ज़लों के किसी मझधार में तुम गाती मेरे नाम की गीत अपने पूरे दिनचर्या में, सुनाने ग़ज़ल तुम आती खुद को बचाते हुए जमाने से। कमाल की अपनी मोहब्बत होती इस नफरत की दुनिया मे, पर सपने ऐसे ही थोड़ी पूरे होते हैं सिर्फ आँखो के बन्द कर लेने से। मैंने तुम्हें चाहा है, सोचा है और अपनी इन कविताओं में पिरोया है…… :- स्वरूपम (Swarup kumar , Rupam pati)

देर रात हुई

देर रात हुई के सो जाओ अब वो न आएगी के सो जाओ अब, बात न हुई के सो जाओ अब

चंद्र ग्रहण

ग्रहण तो तुम लगा गई… कुछ जिंदगी में कुछ सासों में कुछ बातों में कुछ यादों में सारी की सारी रातों में आज रात का ये 'चन्द्र ग्रहण' कुछ नही है तेरी ग्रहण के सामने… :- रूपम पति

वामपंथ भाया चीन

वामपंथी हमेशा अन्य पर अपना परजीवीकरण चलाते आए हैं, आप विपक्षी द्विआधारी के अलावा किसी अन्य चीज से आने वाली आलोचना नही देख सकते। क्या मार्क्स ने तुम्हें यही सीखाया है? दूसरों के कन्धे पर बंधूक रख कर चलाना ही तो इन कोमोरेड वालों का काम है।तर्क यह है कि साम्यवाद को वास्तव में कभी भी लागू नहीं किया गया है, क्या लेनिनवादी शुद्ध सोफस्ट्री, अमूर्त आदर्शवाद के फ्लेकी हॉल मेंआपको हमेशा वही साफ़ सुथरा बचा हुआ चेहरा ही दिखाएंगे और गलत इतिहास ही पढ़ाएंगे। क्या चीन में दक्षिणपंथी सरकार है? उसकी व्यवहार आपकी अतिप्रिय कौम के प्रति कैसी है? वो आपलोग इन सवालों का जवाब क्यों नही बताते,पूछना समय मिलने पर स्वयँ से। चीन के मदरसों में सिर्फ़ चाइना का ही सिलेबस चलता है, सरकार ही कुरान का भी पब्लिशिंग करवाता है ताकि के मुसलमानों को दबाया जा सके। "क्सिनजिनंग" वहाँ की मुस्लिम बहुल इलाका है, उस प्रान्त में 90 के दशक में मुसलमानों की आबादी करीब करीब 80 लाख थी और उस समय मुस्लिम उसे अलग देश बनाने के लिए पुरज़ोर तरीके से आंदोलन करते थे, आपको बता दूं कि खाड़ी के देशों का भी समर्थन प्राप्त था लेकिन चीन क

मत मार मुझे

यूँ नज़र मिला कर के मत मार मुझे, यूँ नज़दीक आ कर के मत मार मुझे। खेल खेल में मार दे, मंजूर है, यूँ दिल को तनहा कर के मत मार मुझे। -परम

वो तोड़ गए दिल!

वो तोड़ गए दिल अब बवाल क्या करें, इस दिल के शहर से जाने का मलाल क्या करें? वो अब शायद ही लौट कर आएंगी, स्वयं की पसंद पर अब सवाल क्या करें? - परम

एक सैनिक का कर्ज कभी ना भूले के देश।

एक अती सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं। उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है। महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई। उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोला "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी। क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं।" उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया। असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?" 'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।" दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई। महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।" एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी। एयरहोस्टेस ने महिला से कहा क

हुस्न की रानी

रुत वो मस्तानी थी प्रेम में वो दीवानी थी। नजर आए नजर मिली हुस्न की वो रानी थी। - रूपम

तेरे आने व जाने

मेरे आँखों से गिरते नमी की मोती हो तुम, मेरे हृदय से निकली हुई प्रार्थना हो तुम। तेरे आने-जाने पर ढले हैं मेरी शाम के सूरज, शान्ति से माँगी हुई अमर प्रेम की गाथा हो तुम।। - रूपम पति

मल्लिक मोहम्मद जायसी

उस मसनवी को मत झुठलाना, वो फ़ारसी को मत झुठलाना। सब-कुछ झूठ-ला देना मगर, वो जायसी को मत झूठलाना।। - रूपम लगभग 1 साल बाद आज दोबारा दिल मे आ गया

दिल-ए-नादां

अश्कों को यूँ हिमायत नही देते, नयन-ए-सराफत को यूँ सदाअत नही देते। ए मेरी जाप्य माशूका-ए-सनम, दिल-ए-नादां को यूँ हिदायत नही देते।। - रूपम पति