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दिन और बात

जिस दिन तुमसे बात नही होती, उस दिन में वो वाली बात नही होती। और जिस जिस दिन तुमसे बात होती, उस दिन सिर्फ तुम्हारी ही बात होती।।

चाहा

बाहें खोल कर मैंने उनको बुलाना चाहा वो न आये और मैं उनको भूलना चाहा, प्यार से मैंने उनके नयनों को देखना चाहा उनकी एक नजर ने ही प्यार का तराना चाहा। प्यार से मैंने उनके होंठों को देखना चाहा उनकी नशीली होंठों से खुद को बचाना चाहा, प्यार से से मैंने उनके साथ खुद को देखना चाहा उनकी पास की दुरी से खुद को कोसना चाहा।।                                            :- रूपम पति

हसीनों ने हसीं बन कर गुनाह किया

हसीनों ने हसीं बन कर गुनाह किया औरों को तो क्या हमें भी तबाह किया। पेश किया जब उनकी बेवफाई को ग़ज़लों में औरों ने तो क्या उन्होंने भी वाह वाह किया।।

नजर

नज़रों से नज़र मिला कर तो देखो नज़रों को नज़र नही लगेगी। गर नजरों को नजर लग गयी तो नजराना नज़रें भर देंगी।।                     :- रूपम पति

नाराज

नाराज क्यों होते हो यूँ.. नाराज क्यों होते हो यूँ..?? गर नाराज हो गए हम, गर नाराज हो गए हम.. तो राज किस पर करेंगी आप..??                         :- रूपम पति

मधुशाला

भुल गया संस्कर संस्कारी पण्डित भुल गया माला। चला जब दौर रमणियों का मग्न हुआ पीने वाला।। - हरिवंशराय बच्चन।