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मोहब्बत के दो अफ़साने

मोहब्बत के दो अफ़साने हो कर बेगाने मिलेंगे सड़कों पे नही तो हम,  तुम्हें मयख़ाने में मिलेंगे, गर तू निकाह कर ली  किसी अफसर के साथ तो सुनने मिरे आंखों में धूल जाने के बहाने मिलेंगे, तुम मिरे चेहरे के मुस्कान पे क्यों जाते हो जाना है तो दिल में जाओ, दर्द के तहख़ाने मिलेंगे, किमती वक़्त निकाल के आना मेरी डायरी देखने इसमें कहानियों में सिर्फ तुम्हारे दिखाए सपने मिलेंगे, देखो लौट के आने में तुम ज्यादा देर मत करना वरना हम भी किसी और के दीवाने मिलेंगे                                                 :- रूपम पति

बनारस कैफ़े

बनारस कैफ़े तन्मय कुंज द्वारा लिखित ये कहानी ज़रा पुरानी-सी है; उस वक़्त की जब बनारस और भी ज़्यादा कूल हुआ करता था, जब स्मार्टफ़ोन्स का भौकाल नहीं था, हवाओं में बकैती का कंसंट्रेशन बहुत ज़्यादा था, और जब कहानी लिखी नहीं, बकी जाती थी। अब आप कहेंगे- बनारस तो हमेशा से कूल था बे! इसकी कूलनेस में कोई कमी नहीं आई है। बकैती तुमनें छोड़ी होगी, हमनें नहीं। अब चुपचाप एक चौचक, चपशंड-सी स्टोरी सुनाओ नहीं तो बड़े प्रेम से कूटे जाओगे। अरे, आप तो गुस्सा हो गए। चलिए सुनाते हैं- तो कहानी 2006 की है। वो दोनों BHU के फ़ाइनल ईयर में थे। B.Tech ख़त्म होने में 2-3 महीने बचे थे। IIT-BHU में प्लेसमेंट वाले भनभना रहे थे। प्यार-व्यार जैसा कुछ था दोनों के बीच। दोनों फ़र्स्ट ईयर से ही हमेशा साथ दिखते थे। सुबह कॉलेज में, तो शाम में लंका, अस्सी, या बनारस की उन रैंडम-सी गलियों में। दोनों की एक बात फ़िक्स होती थी कि दिनभर चाहे कहीं भी हो, शाम हर रोज़ साथ बिताएँगे। ये फाइनल ईयर था बॉस। ज़िंदगी भर साथ रहने के वादे इसी ईयर में टूटते हैं ना। या तो उसके पापा नहीं मानेंगे या तुम्हारा प्लेसमेंट नहीं होगा। अब जो हो, लंका चलते