बिंदुवार

संपूर्ण सृष्टि अर्थात पृथ्वी पत्थर पेड़ पौधे खनिज संपदा जीव जंतु सब के सब सजीव है चाहे वह भूमि पर पड़ा वह पत्थर क्यों हो वह भी सजीव है। सब बढ़ते तथा घटते हैं और जो भी बढ़ता तथा घटता है वह नष्ट होता है किसी की आयु सीमा बहुत कम होती है तो किसी की बहुत अधिक होती है प्रत्येक को अपने द्वारा बिताया हुआ आयु सीमा बहुत दूसरे की तुलना में उत्तम लगती है। सर्प - मेढक ये एक प्रकार से देखें तो कीट पतंगों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहता है उनकी दृष्टि से देखा जाए तो वे अपना अपना निर्धारित आयु तय करते हैं। इसी प्रकार का पत्थर क्यों ना वह भी घटता या बढ़ता है, संभवत हम देख नहीं सकते हैं हो सकता है कि कई करोड़ों वर्ष में हमारे नाखून के जितनी चौड़ी कम हो। हमें इस बात का ज्ञान नहीं है कि पत्थर कितने समय के अंतराल में और कितनी मात्रा में कम होते हैं किंतु यह सत्य है , जैसे कि कोयला को ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है और था वह भी नष्ट हो जाते हैं अर्थात कुछ वस्तुएं अपनी आकार से बड़ी होती हुई नष्ट होती है तो कुछ अपनी आकार से छोटी होते हुए नष्ट होती हैं। जो अपने आकार से बड़े वही सजीव हो ऐसा कहना अथवा सोचना अनुचित होगा, अपनी आकार से छोटे होने वाले इस अजीब हो सकते हैं यह अवश्य है कम मात्रा में अपनी आकार से छोटे होते हैं। धरती अपनी आकार से छोटी होती जा रही है, सूर्य की प्रकाश जी कम होती जा रही है संभवत सूर्य की आकाश भी कम होती है अगर यह अपनी हार अथवा अपने प्रकाश को पढ़ाते हुए है आगे बढ़ती तो क्या हम यह कहते कि यह धरती और सामने जो दिख रहा है सूर्य सजीव इस प्रकार है नहीं क्योंकि वह हमारे सजीव होने के नियमों में अच्छे से बैठ नही पाते हैं। आकाश भी घट रही है (अपने आकार में)।

कई व्यक्ति/वैज्ञानिक का मानना है कि एक बहुत छोटी सी एनर्जी से एलिमेंट्स बने फिर गैलेक्सी / सुपर नौवा ये सब बने ,गैलेक्सी बनने के बाद अथवा के क्रम में ग्रैविटी आयी , किन्तु किन्तु किन्तु क्या एलिमेंट्स के पास अपनी ग्रेविटी नही थी..?? ग्रेविटी थी .. क्या उस एनर्जी के पास ग्रेविटी नही थी ..?? थी, अवश्य थी... 
अब आते हैं मूल पर
एक था/है/रहेगा .. क्या था/है/रहेगा ?? मुझे नही ज्ञात ...
अब वो स्वयं को बढ़ाया (वो बढ़ता नही है , वो स्वयं को बढ़ाता है इसीलिए वो नष्ट नही होगा किन्तु जो बढ़ा है वो घट सकता है अर्थात वो बढ़ा हुआ घट कर उसी में लोप हो सकता है) अब जो बढ़ा हुआ है वो फिर से बढ़ता है , बढा बढ़ा अब फिर से बढ़ता है। तीन बारी बढ़ने के बाद आकाश बनता है  फिर तो हमें ज्ञात है ही आगे क्या होता है, ये सम्पूर्ण जगत बना।

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