मेरी कुछ अनकही पंक्तियां

कुछ अनकही पंक्तियां


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वो आज जो हत्यारा बन बैठा है न,

कल तक किसी के निगाहों
से उसकी हत्या हुई थी…
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क़त्ल तो उनकी अदाएं करती हैं
ये तलवारें तो मुफ़्त में बदनाम हो गए…

वो ज़रा सी जो पलकें झुका के मुस्कुराई थीं
हम तो उसी ज़गह पे अपने काम से तमाम हो गए…
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मुक़म्मल करने ही वाला था मैं वो नज़्म
तभी तेरे ज़हन में इक बहम हुआ जन्म,
आख़िर में तूने मुझे दे दिया था जो दर्द
सो लिखने पड़े थे मुझे अपने सारे ज़ख्म
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आज उन्होंने शांज को सवेरा कह दिया
मुझे काला और खुद को गोरा कह दिया,
ध्यान से देखो मुझे, मैं तो मरा पड़ा हूँ
लेकिन उन्होंने मुझे ही हत्यारा कह दिया।
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जेठ गया, लेकिन बालू पे घड़े की दाग आज भी है
सुखी पड़ी कुएं पे रस्सी की वो दाग आज भी है
जमाना कहता है, बीत चुका जमाना जुदाई को
लेकिन तेरी मोहब्बत की, मेरे पीठ में दाग आज भी है…
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आईने में देखना, चेहरे दिखाने से बेहतर होता है
फूलों का मुरझाना, तोड़े जाने से बेहतर होता है

और कितने दिनों तक बेटियां डर के साये में जियें
रेपिस्ट को जलाना, कैंडल जलाने से बेहतर होता है,

ओ अच्छा! आप हमें उस रोज बर्बाद कर गए थे
कभी कभार बरबाद होना आबाद होने से बेहतर होता हैं.
                                -  रूपम पति
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मर भी जाऊ तो नही मांगने वाला रोशनी, ज़ुल्मत में
तुझे नही मांगने वाला तेरे अब्बू से नेमत में

मुझे कोई फ़िक्र नही होगी जमाने के बन्दूको की
भागाने बाद नही मांगने वाला ख़ुदा से रहमत मैं

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सवाल है, मैं आजकल खुशहाल क्यों रहता??
क्योंकि अब वो मुझसे खफ़ा नही रहता..
मालूम है, क्यों औरत मना है मस्जिद में!!
क्योंकि औरत देखने से ख़ुदा, खुदा नही रहता..

          - रूपम

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