धर्मांतरण और धर्मांतरित लोगों कि डिलिस्टिंग

अगर किसी भारतीय से पूछा जाए कि झारखंड में धर्मांतरण कब से हो रहा है उसके पास तीन उत्तर होंगे, पहला : पिछले 10 -15 सालो से, दूसरा : झारखंड का अलग राज्य बनने से माने 23-24 सालों से और तीसरा जब से नक्सली झारखंड कि जंगलों में अपना अधिकार जमाने लगे तब से, किन्तु ये तीनो अवधारणा गलत होंगीं। जब अंग्रेजों की मिशनरि आयी तो वो सबसे पहले झारखण्ड (तत्कालीन बँगाल प्रेसिडेंसी) के पर्वतीय क्षेत्रो की ही अपना लक्ष्य बनाई। 1750 के आस पास झारखंड में मानभूम, सिंहभूम, संथाल, कोल्हान और छोटानागपुर के पठार प्रमुख क्षेत्र हुआ करते थे। शुरुआती 1764 के समय में अंग्रेजो का झरखंड में पहली बार सिंघभूम क्षेत्र में प्रवेश हुआ और तब कोल्हान में “हो, सिंह और ढाल” शासकों का शासन था और मार्च 1764 तक अंग्रेजों ने घाटशिला के राजमहल में अपना कब्जा कर लिया थी। अगस्त आते आते सम्पूर्ण झारखण्ड में राजा और प्रजा दोनों ने अंग्रेजो का पूर्ण रूप से विद्रोह तथा युद्ध प्रारंभ कर दी। उन्ही विद्रोहों के समानंतरण अंग्रेजों की मिशनरि अपनी धर्मान्तरण का कार्य प्रांरभ कर चुके थे।


धर्मांतरण के विरुद्ध पहली लड़ाई

झारखंड में अंग्रेजों के विरुद्ध सारे विद्रोहों में बिरसा आंदोलन सबसे बड़ा था। सन 1880-85 में 15-16 वर्ष का युवा छोटे छोटे गांवों में उलगुलान का बिगुल फूँक दी थी। मुंडा उलगुलान का नेतृत्व धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा कर रहे थे। यह उलगुलान राजनैतिक अर्थात स्वतंत्र मुंडा राज का स्थापना करना आर्थिक अर्थात मुंडाओं की भूमि को पुनः प्राप्त करना और धार्मिक अर्थात ईसाई मुंडाओं को अपने धर्म में वापस लाना था। भगवान बिरसा मुंडा ने 1886-1890 का दौर कोल्हान का चाईबासा क्षेत्र में बिताया। और इसी समय अंग्रेजी मिशनरी कि धर्मांतरण को कड़ी चुनौती मिलने लागि थी। 24 दिसंबर - 25 दिसंबर 1899 को भगवन बिरसा मुंडा ने हजारों की संख्या में लोगों और अपने अनुयायियों को संबोधित करते हुए ठेकेदारों, हाकिमों और इसाईओं को मारने की अपील की जो की राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों में छापी थी। इसके बाद भगवन बिरसा मुंडा के अनुयायिओं ने चर्च (गिरिजाघरों) में आग लगाना आरंभ कर दिया। इसके बाद झारखंड में अंग्रेजों के विरुद्ध सारे आंदोलनों में धार्मिक आंदोलन को भी रखा गया। धरती आबा का झारखंड में प्रभाव का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि झारखंड राज्य का गठन भी उनकी जयंती (15 नबम्बर) के दिन हुआ था।


धर्मांतरण के विरुद्ध दूसरी लड़ाई संसद में 

अब आते हैं साल 1967 परए लोकसभा चुनाव में लोहरदग्गा (तत्कालीन बिहार) से कार्तिक उरांव नाम के व्यक्ति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की टिकट से चुनाव जीतते हैं। कार्तिक उरांव जी पुरे छोटानागपुर में बाबा कार्तिक उरांव के नाम से जाने जाते थे। बाबा कार्तिक उरांव वनवासियों के ईसाई कन्वर्जन से अपने समाज को बचने के लिए 1967 में संसद में उन्होने अनुसूचित जनजाति आदेश संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया जिसपर 235 सांसदों का समर्थन स्वरुप हस्ताक्षर था। तत्पश्चात संसद में एक समिति बनती है और वो समिति 17 नवंबर 1969 को अपनी सिफारिशें दीं, उन सिफारिशों की प्रमुख बातें यह थी की यह थी कि कोई भी व्यक्ति जिसने जनजाति मत तथा विश्वासों का त्याग कर ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया होए वह अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति न कहलाये, सरल शब्दों में उस व्यक्ति को किसी भी प्रकार का जनजातीय लाभ ना मिले।

अब शुरू होती है राजनीति

जैसे ही ईसाई समुदाय को संसद समिति बिंदुओं के बारे में पता चलती है वैसे ही ईसाई धर्म के प्रमुख धर्म गुरु इंदिरी गांधी पर दाबाब बनाना प्रारंभ कर देते हैं। और समिति कि सिफारिशें ठंडे बस्ते में चली जाती है। कई वर्ष बीत जाने के बाद भी जब इस विधेयक पर संसद में कोई चर्चा ना होने कि स्थिति में बाबा कार्तिक उरांव जी 322 लोकसभा सदस्य और 26 राज्यसभा सदस्यों के हस्ताक्षरों का एक पत्र इंदिरा गांधी को दिया। किन्तु दुःख की बात यह है की वह विधेयक जिसे कुल 348  सांसदों का समर्थन प्राप्त था वो कभी संसद से स्वीकार न हो सका अगर हो जाता तो आज देश में जनजातीय समुदाय का इतनी बड़ी मात्र में धर्मांतरण न हो रहा होता।


वर्तमान स्थिति

अब वर्त्तमान पर अपनी दृष्टि डालते हैं। पिछले 3 वर्षों से जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और झारखण्ड में डिलिस्टिंग की मांग को ले कर कई प्रकार की जनजागरूकता अभियान गांवो में चलाया जा रहा है, अभियान के साथ साथ जिलो में डिलिस्टिंग रैली भी निकाल रही है। अब उनके सामने एक ही इस्लामिक धर्मांतरण भी खड़ा है, झारखण्ड में जिस प्रकार से आदिवासी कामकाजी महिलाओं को प्रेम प्रसंग में फांस कर निकाह करने के बाद फिर अपने ही मजहब में एक और निकाह करते हैं। 4 दिसंबर 2023 को संसद भवन में सांसद निशिकांत दुबे, झारखंड के कुछ इलाकों में जनसंख्या का संतुलन बिगड़ने का दावा करते हैं और कहते हैं की बांग्लादेशी घुसपैठिये झारखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में आते हैं और आदिवासी महिलाओं से शादी करते हैं। वहां उनकी आबादी लगातार बढ़ रही है जिससे जनसंख्या संतुलन बिगड़ने लगा है।

छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री गणेश राम भगत जो की जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक भी हैंए उनके मार्गदर्शन में डिलिस्टिंग कि रैली निकल रही है और लोग गांव गांव जा कर जनजागरूकता अभियान चला रहे हैं। छत्तीसगढ़ के जशपुर बस्तर राजधानी रायपुर की रैली में हजारों की संख्या में लोग समर्थन में आते थे। झारखण्ड में पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष और झारखंड के खूंटी इलाके से आठ बार लोकसभा सांसद रहे कड़िया मुंडा जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा चलायी जा रही डिलिस्टिंग की अगुवाई कर रहे हैं। कड़िया मुंडा जी  साथ मेघा उरांव और सन्नी उरांव भी जुड़े हैं। जब युवा सन्नी उरांव गांवों में जा कर लोगो को जागरूक करने का काम करते थे तो वे उन कार्यों को सोशल मिडिया में साझा करते थे उस समय कुछ लोग (युजर्स) उनका यह कह कर मजाक उड़ाते थे की एक 20 25 साल के लड़के से कुछ ना होने वाला। किन्तु सन्नी उरांव जी रुके नहीं और लोगो को जागरूक करने का काम करते रहेए जिसका परिणाम यह रहा की 24  दिसंबर 2023 को रांची में होने वाले डिलिस्टिंग की रैली में लाखों की संख्या में लोग एकत्रित हुए। उसी रैली में क्षेत्रीय मीडिया द्वारा उनके चहरे को धूमिल करने का कार्य किया गया।

पिछले कुछ वर्षो से “आदिवासी हिन्दू नहीं हैं” ये तर्क दिया जा रहा है, सन्नी जी इसके उत्तर में कहते हैं “तब उन बुद्धिजीवियों के अनुसार आदिवासियों को हिन्दू पंचांग के अनुसार भादो एकादसी के दिन करम नहीं गाड़ना चाहिए (करम परब झारखण्ड में धूम धाम से मनाये जाने वाले पर्वों में से एक पर्व है) और सावन सप्तमी की पूजा भी छोड़ देनी चाहिए और तो और रोहतासगढ़ का इतिहास में महादेव मंदिर क्या है”

पंचांग, चाँद और सूरज देख कर बनाया जाता और चाँद और सूरज दोनों ही प्रकृति हैं। भगवन बिरसा मुंडा सिंगबोंगा को मानते थे और सिंगबोंगा भगवान सूर्य को कहा जाता है।


कड़िया मुंडा जी के अनुसार “झारखंड में ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों का प्रतिशत लगभग 15-20% होंगे लेकिन अगर हम सरकारी नौकरियों  सहित प्रथम श्रेणी के अधिकारियों पर नज़र डालेंए तो 80-90% वे हैं जो धर्मांतरित हैं।”

राष्ट्रीय संयोजक पूर्वमंत्री गणेशराम भगत ने कहा कि “देश की 700 से अधिक जनजातियों के विकास एवं उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण एवं अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया था, लेकिन इन सुविधाओं का लाभ अधिकतर वे लोग उठा रहे हैं, जो अपनी रूढ़ि प्रथा छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बन गए हैं”

राष्ट्रीय सह संयोजक राजकिशोर हांसदा अनुसार “सरकार से हमारी मांग है कि धर्मान्तरित व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति के आरक्षण की सुविधा नहीं मिलेण् इस मुद्दे को स्व कार्तिक उरांव ने संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष रखा था ताकि जो व्यक्ति जिसने जनजाति आदि मत तथा विश्वासों का त्याग कर दिया है और ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया है, उसे अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा और उसे अनुसूचित जनजाति का आरक्षण नहीं मिलेगा”

पूर्व न्यायाधीश प्रकाश सिंह उईके अनुसार “भीमराव अंबेडकर ने संविधान के अनुच्छेद.341 में अनुसूचित जाति के लिए व्यवस्था की है कि जो अनुसूचित जाति के लोग मुस्लिम या ईसाई धर्मग्रहण करेंगे उसे अनुसूचित जाति का लाभ नहीं मिलेगा। जब मुस्लिम या ईसाई बनने पर अनुसूचित जाति की पहचान मिट जा रही है, तो आदिवासी की पहचान भी ईसाई या मुस्लिम धर्म में जाने पर उसकी आदिवासी की पहचान मिट जाती है”


जनजाति सुरक्षा मंच के अनुसार फरवरी महीने में देश की राजधानी दिल्ली में इससे भी विशाल रैली की जाएगी।


डीलिस्टिंग और उसकी आवश्यकता

डीलिस्टिंग को जानने से पहले झारखंड के कुछ प्रमुख परब(पर्व) के बारे में जानना आवश्यक होगा। करम परब, इस पर्व में करम वृक्ष कि पूजा कि जाती है और और उसके डाल अपने घरों में लगाया जाता है। 

सोहराय और गुहाल पूजा, सोहाराय और गुहाल (घर का वो हिस्सा जहां गाय-बिल रहते हैं) पूजा दोनों ही दीपावली के आस-पास मनाया जाता है।

टुसु पोरोब, टुसु पोरोब में कई गाँव मिल कर मेल लागते हैं, और उस मेले में ऊंची ऊंची चोड़ोल ले कर जाते है। इसका आयोजन एक माह तक होता है और मकर के दिन समाप्त होता है।

जोमषुईमपोरोब, जोमषुईम चानडु याने चाँद को देख कर जोमषुईम मनाया जाता है।

मागे परब, जोमषुईम बाद मागे शुरू होता है नियमानुसार 8 दिन का परब लेकिन 3 दिन मनाया जाता है। मागे का उत्पत्ति झारखंड के कुचाई (सरायकेला खरसवां) में हुई है।

बा परब / बाहा परब, बाहा(संथाल) और बा(हो) शाल फूल को देख कर और होली के अगल बगल मनाया जाता है।

फूलों में शाल और पेड़ों में करम जनजातीय समुदाय में विशेष महत्व रखते हैं।


ये समस्त पर्व प्रकृति से जुड़े हुए हैं और धर्मांतरण के बाद समाज इन पर्व त्योहारों से कट जाता है। लोगों को धर्मांतरित प्रलोभन दे कर या दबाब बना कर किया जाता है। गहन जंगलों के बीच में बसे गांवों में अगर 12 घर हैं तो मिशनरी पहले 2 घरों को अपना लक्ष्य बनाते हैं उन्हें भिन्न भिन्न प्रकार का प्रलोभन दिया जाता है, जैसे तुम्हें 10 हजार रुपये देंगे, तुम्हारे बेटे बेटी कि शादी का खर्च हम उठायेंगे, तुम्हारी नौकरी लगा देंगे, तुम्हें 20KG चावल देंगे आदि। अब 2 घरों को धर्मांतरित करने के बाद उन घरों में चांगई सभा का आयोजन किया जाता है और बाकी के बचे 10 घरों के लोगों को बुलाया जाता है अगर कोई ना जुड़े तो उसके उप्पार दबाब बनाया जाता है, उसकी जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया जाता है। चांगई सभा में लोगों के अंदर से भूत/डायान निकालने का ढोंग किया जाता है बीमार व्यक्ति को ठीक करने का ढोंग भी किया जाता है। झारखंड में 80 के दशक में नक्सल गतिविधि कि शुरुआत होने के बाद नक्सली धीरे धीरे फैलते गए और गाँव दर गाँव मुख्यधारा से कटते गए। जिस कारण आदिवासी ग्रामीणों के मन में “हम हिन्दू नहीं हैं” “हिन्दू हमारा शोषण करते हैं” ऐसे ही अनेक प्रॉपगेंडा चलना आसान हो गया, उसके बाद मिशनरी का उन ग्रामीणों का धर्मांतरण करना और भी आसान हो गया। 


डीलिस्टिंग को सरल शब्दों में कहा जाए तो धर्मांतरितों को ST(जनजातीय) लाभ मिलन बंद हो, सरकार कानून बनाए और जो माइनोरिटी हैं वो माइनोरिटी का ही कहलाएं उनको ईसाई आदिवासी कह कर सम्बोधन बंद किया जाए।

डीलिस्टिंग कि आवश्यकता

डीलिस्टिंग इसलिए कि हमारे बच्चे करम, शाल, बरगद, पीपल आदि पेड़ों कि पूजा करें ना कि 25 दिसंबर के दिन उन्हे काट कर अपने घरों में सजाएं।

डीलिस्टिंग इसलिए कि हमारे बच्चे एक दूसरे का सम्बोधन जोहार - जोहार से करें ना कि हाल’लुआ – सलाम”लेकुम  से।

डीलिस्टिंग इसलिए कि हमारे बच्चे माँदर और नागड़ा (वाद्य यंत्र) बजाते हुए पारंपरिक गीत गाएं ना कि गिटार बजते हुए 25 दिसंबर को गीत गाएं।

डीलिस्टिंग इसलिए कि हमारे बच्चे जो रूढ़िवादिता को मान रहे हों उन्हे सरकारी आरक्षण का लाभ मिल सके।

डीलिस्टिंग इसलिए कि हमारे बच्चे पहाड़ को देख कर मारांगबुरु मानते हुए उसे जोहार(प्रणाम) करें ना कि जोहार करने वालों को शैटन/बुतपरस्त/पगान कह कर ना पुकारें।

डीलिस्टिंग इसलिए कि हमारे बच्चे अपने सर को पुजारी/पहन/मुंडा/मानकी के सामने झुकाएं ना कि फा’र या मौ’वी के सामने।

डीलिस्टिंग इसलिए कि हमारे बच्चे अपने गौरवशाली इतिहास पर गर्व करते रहें।


14 नवंबर 2022 को धर्मांतरण पर सुप्रीम कोर्ट “केंद्र की तरफ से जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए। वर्ना बहुत कठिन स्थिति आ जाएगी। ऐसे मामलों को रोकने के उपाय चलाएं जिनमें प्रलोभन के जरिए धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। भारत में रहने वालों को यहां की संस्कृति के हिसाब से चलना होगा।”


- रूपम पति

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