झारखंड की गोल-गोल राजनीति

झारखंड की पहली विधानसभा का गठन 22 नवंबर 2000 हुई थी याने राज्य बनने के एक हफ्ते के बाद। शुरुआत से ही झारखंड त्रिशंकु रहा है, कोदाईबांक एक छोटा सा गाँव का बाबूलाल मारंडी नामक व्यक्ति राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बनाए जाते हैं, उनके द्वारा लिए गए प्रमुख निर्णयों में 1932 खतियान को स्थानीयता का आधार बनाया गया और थर्ड ग्रैड के सरकारी पोस्ट्स को स्थानीयों के लिए आरक्षित रखा गया। झारखंड के लोगों ने सोच रखा था की अब हमारी राज्य की विकास होगी-यहाँ के लोगों की विकास होगी किन्तु उन्हे कहाँ पता था की उनकी ये आशा इतनी जल्दी टूटने वाली है। 2 वर्षों तक सब कुछ सही चलता है, उसके बाद जदयू (हाँ वही नीतीश कुमार जी की पार्टी) के दवाब के कारण बाबूलाल जी को अपनी सत्ता अपने ही दल के विधायक अर्जुन मुंडा जी को सौंपनी पड़ी। अर्जुन मुंडा जो की JMM (झारखंड मुक्ति मोर्चा) से 1995 में कोल्हान की खरसावाँ विधानसभा से विधायक बने थे और 2000 में उन्हें भाजपा से चुनाव लड़ विधानसभा में पहुंचते हैं। बाबूलाल जी द्वारा पारित 1932 खतियान को हाईकोर्ट ने गलत कहते हुए निरस्त करने के आदेश दे दिए, 1932 को लेकर झारखंड में लोग सड़कों पर उतर चुके थे। प्रथम JPSC का परिणाम 2004 में आया और उसपर भी हाईकोर्ट ने जांच के आदेश दे दिए।


अर्जुन मुंडा जी की भाजपा पार्टी में पकड़ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की उनके कहने पर पार्टी ने 2005 विधानसभा चुनाव अर्थात दूसरी विधानसभा चुनाव में कुछ विधायकों की टिकट काट दी थी। भाजपा की कुल 30 तथा JMM की 17 सीटें आईं, किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिले, माने ये विधानसभा भी त्रिशंकु ही रही। JMM के अध्यक्ष शिबू सोरेन जिन्हे दिशोम गुरु भी कहा जाता है उन्होंने राज्यपाल के सामने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 10 दिन बाद ही राज्यपाल को अपना इस्तीफा पत्र सौंप आए क्यूंकी शिबू सोरेन विधानसभा में बहुमत साबित करने में असफल रहे। इसी के साथ ही अगले ही दिन अर्जुन मुंडा द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ली जाती है और वो बहुमत साबित करने में सफल भी रहे, किन्तु अगले ही वर्ष एक सड़क के कारण अर्जुन मुंडा को राज्यपाल के हाथों अपनी इस्तीफा पत्र सौंपनी पड़ी। अब राज्यपाल के सामने एक निर्दलीय चौथा मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले रहा था, भारतीय राजनीति के इतिहास में मधू कोडा जी तीसरे निर्दलीय मुख्यमंत्री थे (ओडिसा के बिश्वनाथ  तथा मेघालय के फ़िलोन ने पहले और दूसरे निर्दलीय मुख्यमंत्री होने का कीर्तिमान रचा जा चुका थे)। आप ऊपर पढे ही थे की अर्जुन मुंडा की पार्टी में इतनी पकड़ बन चुकी थी की कुछ विधायकों का टिकट काट गया था और उन विधायकों में कोल्हान क्षेत्र का जगन्नाथपुर विधानसभा का विधायक मधू कोडा भी थे और मधू कोडा के कारण ही अर्जुन मुंडा को अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गवानी पड़ी। बात ऐसी है की कोल्हान के एक सड़क को लेकर अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा आमने सामने हो गए। मधु कोड़ा विधानसभा में रो पड़े, अपनी ही सरकार पर आरोप लगाए और उसी दिन शाम को ही सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर देते हैं। 2007 में हुआ कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला में आयकर विभाग तथा सीबीआई ने झारखंड के मधु कोड़ा व विनोद सिन्हा नामक दो व्यक्तियों के कई सारे ठिकानों पर रैड मारी। सीबीआई के अनुसार ये घोटाला 4 हजार करोड़ का था और इस पूरे मामले में 9 लोगों को आरोपी बनाया गया। अंततः मधू कोड को भी राज्यपाल के हाथों अपनी इस्तीफा पत्र सौंपनी पड़ी। अब शिबू सोरेन जी पुनः राज्यपाल से मुख्यमंत्री की शपथ लेते हैं और इस बारी वो विधानसभा में बहुमत साबित करने में सफल रहे। शपथ लेने के 6 महीनों के अंदर ही व्यक्ति को राज्य के किसी भी विधानसभा से उपचुनाव लड़कर जीतकर आना होता है या विधानपरिशद का सदस्य चुन कर आना होता है लेकिन झारखंड में विधानपरिषद है नहीं इस कारण शिबू सोरेन जी के पास पहला विकल्प ही बचती है। 4 माह बाद शिबू सोरेन जी तमाड से चुनाव लड़ने को तैयार होते हैं लेकिन उन्हे इस बात की जरा सी भी भनक नहीं थी कि उनके ही मंत्री एनोस एक्का ने झारखंड पार्टी से राज्य पीटर को शशक्त कर चुके थे और होता भी वही है शिबू सोरेन जी चुनाव हार जाते हैं। अब इन सब घटनाक्रम के बाद राज्यपाल के द्वारा झारखंड में 344 दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है। इसी बीच झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मारंडी जी अपनी एक अलग पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के नाम से बना चुके थे।


2009 में राज्यपाल के अनुशंसा पर इलेक्शन कमीशन चुनाव करने की घोषणा कर देती है, माने 10 साल से पहले ही तीसरी विधानसभा चुनाव। परिणाम कुछ इस प्रकार के रहे भाजपा 18; JMM 18; काँग्रेस 14; JVM 11; अजसू 5; आरजेडी 5; किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं फिर से त्रिशंकु। JMM और BJP की गटबंधन कि सरकार बनती है। शिबू सोरेन जी तीसरी बार शपथ लेते हैं इस बार पुनः बहुमत साबित कर देते हैं लेकिन शिबू सोरेन जी विधायन नहीं संसद होते हैं तो कायदे से 6 माह बितर उन्हे विधायिकी दिखनी पड़ेगी। आपको क्या लगता है इस बारी शिबू सोरेन जी जीत पाएंगे! हार जीत का बात तो तब आए जब वो विधायिकी का चुनाव लड़े। जैसा की आपने पढ़ा शिबू सोरेन जी सांसद भी थे और संसद में शिबू सोरेन ने यूपीए के सार्थन में वोट कर दिया। इससे दुखी भाजपा ने JMM से अपनी समर्थन वापस ले ली, और पुनः उन्ही राज्यपाल के हाथों में इस्तीफा पत्र देना पड़ा। राज्यपाल के अनुशंसा पर राज्य में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया। 3 महीनों बाद कई दौर की मीटिंग्स हुई JMM और भाजपा के बीच भाजपा सेंट्रल के साथ भी मीतन हुई और 50-50 पर दोनों दलों की सहमति बनी, ढाई साल BJP CM की कुर्सी पर बैठती उसके बाद ढाई साल JMM CM की कुर्सी पर। अर्जुन मुंडा जी तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं, बहुमत भी साबित करते हैं और इसमें हेमंत सोरेन जी उप-मुख्यमंत्री का पदभार संभालते हैं। 2 वर्ष तक सरकार चलने के बाद हेमंत सोरेन अर्जुन मुंडा जी के साथ अगली सरकार की मंत्रिमंडल की बात करते हैं किन्तु दोनों में बात बनती नहीं और 2 वर्ष 4 माह में सरकार गिर जाती है, अर्जुन मुंडा जी प्रेस को कहते हैं “हमारी ढाई ढाई साल की कोई डील नहीं हुई थी, ये सारी झूठी बातें हैं”। फिर से लगती है राष्ट्रपति शासन, राज्य को बने 13 साल भी नहीं हुए और इसे तीसरी बार राष्ट्रपति शासन देखना पड़ रहा था। महीने भर बाद ही मीटिंग्स के दौर फिर से शुरू हो गए, इस बार JMM कहीं नहीं जा रही थी, उसके पास कांग्रेस और आरजेडी दोनों दल मीटिंग करने या रही थी। राष्ट्रपति शासन के 6 महीने बाद हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं और यह सरकार दिसंबर अपनी बची हुई कार्यकाल पूरी कर लेती है।


2014 में चौथी विधानसभा चुनाव होती है, इस चुनाव में मोदी जी कि लहर साफ साफ देखि जा सकती थी, झारखंड के लोग अब BJP में एक आशा देख रहे थे मोदी पर उन्हें विश्वास होने लगा था, लोकसभा की 12 सीटें देने के बाद विधानसभा चुनाव में एनडीए 42 (बीजेपी 37; आजसू 5) JMM 19; JVM 8; कॉंग्रेस 6; निर्दलीय 6, बीजेपी को 37 सीटें दे कर झारखंड की जनता मोदी जी को अपने राज्य सौंप देतीं है। इसी चुनावी वर्ष में कुछ रोचक घटनाएं भी घटी, जिनमें से एक तो ये थे की बाबूलाल मारंडी की JVM नीतीश कुमार की JDU के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही थी हाँ वही JDU जिसके कारण बाबूलाल जी को अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी और उनके ठीक बाद के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा जी अपनी खरसावाँ विधानसभा हार चुके थे। अब मुख्यमंत्री की दावेदारी में बीजेपी से दो नाम सामने या रहे थे, पहला रघुबर दास दूसरा सरयू राय, दोनों ही कोल्हान कि जमशेदपुर पूर्वी और पश्चिमी विधानसभा से जीते थे। पार्टी रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनती है, मुख्यमंत्री जी शपथ लेने के बाद अपना मंत्रिमंडल का विस्तार करते हैं सरकार अपनी काम काज आरंभ कर देती है। रघुबर दास की सरकार 1 साल बाद स्थानीय नीति लाती है अब स्थानीयता का आधार 1932 के स्थान पर 1985 को कर दिया गया, इस नीति के बाद रघुबर सरकार ने CNT-SPT ऐक्ट में सनसोधन की बिल ले आई, इन दोनों के विरोध में पूरी राज्य की जनता सड़कों पर उतर चुकी थी। 1 जनवरी 2017, खरसावाँ गोलीकांड में शाहिद हुए आदिवासियों को श्रद्धांजलि देने शाहिद स्थल पहुंचे बाहर निकालने के क्रम में किसी ने मुख्यमंत्री के उप्पार जूता फेंक दि......500 लोगों के विरुद्ध FIR होती है। कुछ समय बाद रघुबर दास की सरकार के विरुद्ध पारा शिक्षक और आगंबड़ी सेविकाएं दोनों ही सरकारी कर्मचारी सड़क पर उतार चुके थे, और उनपर सरकार द्वारा किया गया लाठीचार्ज, रघुबर सरकार की दूसरी कील थी। रघुबर जी के ही मंत्री सरयू राय (हाँ वही मुख्यमंत्री के दावेदार) के स्वर मुखर होने लगे थे, राय जी के द्वारा दिल्ली पार्टी ऑफिस में भी शिकायत किया जा रहा था। उस जूता कांड के एक वर्ष बाद याने 1 जनवरी 2018 को रघुबर सरकार गिरने की पूरी पटकथा रची जा चुकी थी, कुछ भाजपा के लोग और कुछ JMM के भी लोग शामिल थे इस पटकथा में, वो तो रघुबर जी खरसावाँ नहीं आए और उनकी सत्ता बच गई। रघुबर जी की पार्टी में पकड़ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था की विधानसभा चुनाव के एक साल पहले ही विधायकों की टिकट कट जाने की खबर सामने आने लागि थी और हुआ भी ऐसा, विधानसभा चुनाव में कई विधायकों की टिकट कट गई। और यही रघुबर सरकार के ताबूत कि अंतिम कील थी। 


2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए 12 (बीजेपी 11; आजसू 1) को सीटें देने वालों झारखंड की जनता विधानसभा में अलग ही मूड में थी, विधानसभा में बीजेपी और आजसू दोनों अलग लड़ रहे थे। UPA 51 (JMM 30; कॉंग्रेस 18); BJP 26; आजसू 2; निर्दलीय 2 । सरकार पर जाने से पहले निर्दलीय के बारे में जान लेते हैं, जिनकी टिकट BJP ने काटी थी उनमें से एक सरयू राय जी भी थे, राय जी पूरे वागी तेवर में रघुबर दास के विरुद्ध जमशेदपुर पूर्वी से मैदान में थे और पूर्वी की जनता ने राय जी को चुना। फिर से भाजपा के किसी मुख्यमंत्री को टिकट काटने के चक्कर में कुर्सी गवानी पड़ी। अब हेमंत सोरेन के नेतृत में सरकार बनती है और सरकार अपनी काम काज आरंभ करती है। बाबूलाल मारंडी जी नरेंद्र मोदी जी के मंच में दिखे और प्रेस को बताया गया कि JVM का विलय BJP में कर दिया गया है, किन्तु JVM के 2 विधायक कॉंग्रेस में चले गए और उनके अनुसार JVM का विलय कॉंग्रेस में हुई है। BJP द्वारा मारंडी जी को नेता प्रतिपक्ष चुना गया। सरकार के द्वारा पहली सरकारी परीक्षा JPSC की गई जिसके परिणाम में धांधली का आरोप लगते हुए कुछ छात्र आंदोलन करने लगे और उन्हे रांची थाना में बंद किया गया। छात्र, वर्तमान सरकार के क्षेत्रीय भाषा नीति, स्थानीयता नीति (60-40) के विरुद्ध सड़कों पर आंदोलन करने लहते हैं। सरकार के आईएएस-आईपीएस अफसर ED के रडार में आ चुके थे।  ED एक एक को समान भेज अरेस्ट करना शुरू कर देती है। पूजा सिंघल से ले कर कई अफसर अंदर गए, रांची के व्यापारी अंदर गए, धीरे धीरे इसकी आंच मुख्यमंत्री तक भी आने लगी, मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि से लेकर प्रेस सलाहकार तक जांच के दायरे में आने लगे और ED उन्हें अंदर करती गई, बालू तस्करी, कोयला तस्करी, भूमि घोटाला, मनी लॉन्ड्री जैसे जुर्म में ED इन्हें अंदर की। उन्ही छात्र आंदोलन से जयराम महतो नाम का एक युवा छात्र नेता उभर कर आया और अब तो उसने अपनी एक राजनीतिक दल भी बना ली है, जिसका नाम JBKSS रखा। सरकार पर घोटालों की जांच के बीच ऑफिस ऑफ प्रॉफ़िट का मामला भी आता है, और 2022 में सरकार गिरने की खबर भी आने लगती है, कोलकाता में कैश के साथ झारखंड के 3 विधायक पकड़े जाते हैं, 5 दिन बाद उन विधायकों की कॉंग्रेस के पूर्व नेता और भाजपा वर्तमान मुख्यमंत्री के साथ फोटो सामने आती है। इसी बीच मुख्यमंत्री के भाई बसंत सोरेन दिल्ली पहुँचने के बाद नोट रीचबल हो गए, कुछ दिन बाद वो रिटर्न आते हैं और जब पत्रकारों ने इससे संबंधित प्रश्न पूछे तो उनका उत्तर “मेरे पास अन्डर्गार्मन्ट खत्म गए थे, उन्हे लेने दिल्ली गया था”। कोई कहता है की बसंत सोरेन खनन लीज मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में गए थे तो कोई कहता है की सरकार गिरने ही वाली थी बस 2 विधायक कम हो गए। इसके बाद फ्लोर टेस्ट होती है और टेस्ट में हेमंत सरकार पास हो जाती है, वो 3 विधायक जो पैसों के साथ पकड़े गए थे, वोट नहीं दे पाए। फ्लोर टेस्ट के कुछ समय बाद सोरेन जी ED के ऑफिस पहुंचते हैं, 2009 में इसी बिल्डिंग में एनोस एक्का रहा करते थे, वही एनोस एक्का जो किसी समय शिबू सोरेन को हराने का काम किए थे। आय से अधिक संपत्ति के मामले में एनोस एक्का की इस बिल्डिंग को ED 2018 में अपने अधीन लेती है और 2021 में अपनी ऑफिस खोलती है। 3 मार्च 2023 को कुछ JMM के विधायक और कॉंग्रेस के आधे से अधिक विधायक BJP में शामिल होने को तैयार थे, झारखंड बीजेपी के कुछ नेता खुश थे तो कुछ ने साफ कह दिया “अगर वे आते हैं तो हम सब अलग हो जाएंगे” इन्ही के आस पास एक निर्दलीय विधायक भी थे, अंततः BJP आलाकमान उन्हें मना कर देती है। 2023 समाप्त अब 2024 के प्रारंभ में मुख्यमंत्री हेमंत जी दिल्ली जाते हैं, कॉंग्रेस के वकीलों से बात करने और BJP के केन्द्रीय नेताओं से बात करने, लेकिन हेमंत सोरेन की बात नहीं बनी और CM आवास से ED उन्हे गिरफ्तार कर ले गई। हेमंत सोरेन जी त्याग पत्र देते हैं उसके साथ ही एक और पत्र में चांपाई सोरेन जी स्वयं को विधायक दल का नेता चुने जाने का पत्र राज्यपाल को सौंपते हैं। चांपाई सोरेन जी झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री तथा कोल्हान के सरायकेला से विधायक चुने गए हैं। 


- रूपम पति

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